HEALTH INSURANCE: सौ में से 83 लोगों के पास ”NO INSURANCE”

देश की 83.4 फीसदी आबादी किसी भी तरह के हेल्थ इंश्योरेंस से कवर्ड नहीं

HEALTH INSURANCE: सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इनवेस्टिगेशन की नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2021 रिपोर्ट के मुताबिक देश की 83.4 फीसदी आबादी किसी भी तरह के हेल्थ इंश्योरेंस से कवर्ड नहीं है। सरकारी इंश्योरेंस योजनाओं से सिर्फ 11% आबादी कवर्ड है।

HEALTH INSURANCE: जो इंश्योरेंस से कवर्ड हैं, उन्हें भी हॉस्पिटल में भर्ती होने पर खर्च का बड़ा हिस्सा अपनी जेब से भरना होता है। ये वे खर्च होते हैं जो इंश्योरेंस में कवर नहीं होते। इन्हें आउट ऑफ पॉकेट मेडिकल एक्सपेंस (OPPME) कहा जाता है।

HEALTH INSURANCE: आउट ऑफ पॉकेट खर्च सरकारी अस्पतालों में कम होता है। मगर बीएमसी जेरियाट्रिक्स का बुजुर्गों पर एक शोध बताता है कि सिर्फ 35 प्रतिशत लोग ही सरकारी अस्पतालों भर्ती होते हैं। प्राइवेट अस्पतालों में आउट ऑफ पॉकेट खर्च बहुत बढ़ जाता है।

 

HEALTH INSURANCE: साल 2020 में जब पूरा देश कोविड से जूझ रहा था, उसी दौरान अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग महीनों में 28 विभिन्न बीमारियों ने कुल मिलाकर 543 बार अपना प्रकोप दिखाया। सबसे ज्यादा 110 बार फूड पॉयजनिंग के आउटब्रेक हुए। 18 बार फूड पॉयजनिंग का आउटब्रेक ओडिशा में हुआ। 17 बार इन्सेफेलाइटिस का आउटब्रेक हुआ। वहीं महाराष्ट्र में पूरे साल में सबसे ज्यादा 85 बार अलग-अलग बीमारियों के आउटब्रेक हुआ।

HEALTH INSURANCE: साल 2019 में 1.71 लाख लोगों को तो सांप ने काटा। इनमें से 1.70 लाख को इलाज के बाद बचाया जा सका। यह आंकडे़ बताते हैं कि हर साल मौसमी बीमारियों के आउटब्रेक और दुर्घटनाओं की वजह से हमें डॉक्टर-अस्पताल के चक्कर लगाने ही पड़ते हैं।

HEALTH INSURANCE: स्वास्थ्य से जुड़ी आपदाओं के बावजूद हमारे देश में मेडिकल इंश्योरेंस लोगों की प्राथमिकता नहीं है। आज भी ग्रामीण इलाकों में 85 फीसदी लोग कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं रखते। सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का कवरेज यहां शहरों के मुकाबले ज्यादा है। मगर इसमें सिर्फ गरीब तबका ही शामिल है।

HEALTH INSURANCE: देश में तीन तरह के अस्पताल काम करते हैं। सरकारी, निजी और ट्रस्ट या एनजीओ के अस्पताल। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2021 के मुताबिक किसी भी तरह के अस्पताल में भर्ती होने पर एक बार के हॉस्पिटलाइजेशन खर्च में से औसतन 80 प्रतिशत लोगों को अपनी जेब से देना पड़ रहा है। यह खर्च सरकारी अस्पताल में कम और निजी अस्पतालों में कई गुना है।

बीएमसी जेरियाट्रिक्स ने बुजुर्गों के हॉस्पिटलाइजेशन पर एक शोध किया। इसमें सामने आया कि 35 फीसदी बुजुर्ग ही सरकारी अस्पतालों में भर्ती हुए।

HEALTH INSURANCE: अमूमन कोई भी स्वास्थ्य बीमा सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने पर ही खर्च कवर करता है। मगर एक औसत भारतीय के मेडिकल बिल का बड़ा हिस्सा अस्पताल में भर्ती हुए बिना करवाए इलाज से बनता है। मौसमी बीमारियों के लिए अमूमन प्राइवेट क्लिनिक में इलाज लिया जाता है। सरकार आबादी के कमजोर तबके, अपने कर्मचारियों और लोअर इनकम ग्रुप के लिए अलग-अलग स्वास्थ्य बीमा योजनाएं चलाती है। यह जनता के टैक्स के पैसे पर चलने वाली बीमा योजनाएं हैं, इसलिए इन्हें पब्लिक फंडेड मेडिकल इंश्योरेंस स्कीम कहते हैं। इन योजनाओं पर खर्च तो बहुत ज्यादा होता है, मगर कवरेज या प्रति व्यक्ति मिलने वाले लाभ के आधार पर देखें तो इनका फायदा बहुत ज्यादा नहीं है।

HEALTH INSURANCE: बता दें कि 2016-17 में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले कुल खर्च में 32 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की थी और 68 प्रतिशत राज्य सरकारों की। वहीं 2017-18 में केंद्र की हिस्सेदारी बढ़कर 41 प्रतिशत और राज्यों का हिस्सा घटकर 59 फीसदी रह गया। इसी का नतीजा है कि सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव बढ़ता गया और लोग प्राइवेट अस्पतालों में जाने को मजबूर हुए। इससे उनका मेडिकल बिल कई गुना बढ़ जाता है।

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