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Maharashtra Political Crisis:महाराष्ट्र में इन दिनों सियासी उठापठक जारी है। खुद शिवसेना के कई विधायक और सासंद अपनी ही पार्टी के खिलाफ बागी हो गए हैं। एकनाथ शिंदे समेत कई विधायक और सांसद बीजेपी को समर्थन कर रहे हैं। इसी बीच शिवसेना के मुखपत्र सामना के जरिए सीएम उद्दव ठाकरे ने बागी विधायकों और बीजेपी पर निशाना है। उन्होंने अपने संपादकीय पत्र में मौजूदा सियासत को स्वनदोष जैसा बताया है और साथ ही अपनी पार्टी के बागी विधायकों और सासंदो को समझाते हुए लिखा है कि समय रहते सावधान हो जाएं, वरना उन्हें कचरे में फेंक दिया जाएगा।
सामना में लिखा गया है कि महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रमों का अंत क्या होगा ये तो कोई भी नहीं कह सकता है। पहले ही हमारे महामहिम राज्यपाल श्रीमान कोश्यारी जी कोरोना से ग्रस्त हो गए हैं। इसलिए राज्य के विपक्षियों का राजभवन में आना-जाना भी थोड़ा थम गया है। राज्य सरकार का निश्चित तौर पर क्या होगा? इस पर शर्तें लगी हैं। शिवसेना में खड़ी फूट पड़ गई है, सरकार संकट में आ गई है, अब क्या होगा? इस पर चर्चा गर्म है।
राजनीति में कुछ भी स्थिर नहीं होता है और बहुमत उससे भी चंचल होता है। शिवसेना के टिकट पर, पैसों पर, निर्वाचित हुए मेहनतवीर विधायक बीजेपी की गिरफ्त में फंस गए हैं। वे पहले सूरत और बाद में विशेष विमान से असम चले गए। इन विधायकों की इतनी भागदौड़ क्यों चल रही है? बीजेपी को यह मजाक नहीं करनी चाहिए कि शिवसेना में जो घटनाक्रम चल रहा है, उससे उसका कोई संबंध नहीं है। महाराष्ट्र की जनता इतनी मूर्ख नहीं है कि वह इसके पीछे का गूढ, दांव-पेंच न समझ सके। होटल, हवाई जहाज, वाहन, घोड़े, विशेष सुरक्षा व्यवस्था बीजेपी सरकार की ही कृपा नहीं है क्या?
ये सभी विधायक एक बार फिर चुनाव का सामना करते हैं तो जनता उन्हें पराजित किए बगैर नहीं रहेगी। इसका भान इन लोगों को नहीं होगा। इसलिए ये शिवसेना के विधायक और माननीय पुन: अपने घर लौट आएंगे। आज जो बीजेपी वाले उन्हें हाथों की हथेली पर आए जख्म की तरह संभाल रहे हैं, वे आवश्यकता समाप्त होते ही पुन: कचरे में फेंक देंगे। बीजेपी की परंपरा यही रही है। महाराष्ट्र में नई सरकार स्थापित करने का सपना किसी ने देखा ही होगा तो वह उनका स्वप्नदोष है। राज्यसभा, विधान परिषद चुनाव की ‘अतिरिक्त’ जीत किसकी वजह से मिली है, यह अब खुल गया है।
अब तो विधायकों को बंद करके रखा गया है। आतंक की तलवार के नीचे रखा गया है, यह वापस लौटे नितिन देशमुख ने साफ कर दिया है। शिवसेना ने ऐसे कई प्रसंगों को पचाया है। ऐसे संकटों के सीने पर पांव रखकर शिवसेना खड़ी रही। जय-पराजय को पचाया। सत्ता आई या गई, शिवसेना जैसे संगठन को फर्क नहीं पड़ता है। फर्क पड़ता है तो बीजेपी के प्रलोभन और दबाव के शिकार हुए विधायकों को।