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SCO: उज्बेकिस्तान में दो दिवसीय शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन, यानी SCO की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 14 सितंबर को ही समरकंद पहुंच गए थे। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और पाकिस्तान के पीएम शाहबाज शरीफ भी इस मीटिंग में शरीक हुए।
SCO: इस दौरान PM मोदी के शाहबाज शरीफ और शी जिनपिंग के साथ मुलाकात पर सस्पेंस है। इस बैठक का सबसे अहम दिन 16 सितंबर को PM मोदी ने संबोधित किया। बैठक के बाद समरकंद मीटिंग से जुड़े डॉक्यूमेंट्स पर साइन किए गए।
SCO: बता दें कि पिछले महीने ताशकंद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की मीटिंग में सदस्य देशों के विदेश मंत्री शामिल हुए थे।
SCO: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर पीएम मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और शाहबाज शरीफ से मिलते हैं, तो ये मुलाकात भारतीय फॉरेन पॉलिसी के लिए बहुत अहम होगी। भारत-चीन के बीच सीमा विवाद गहराने के बाद मोदी-जिनपिंग की ये पहली मुलाकात होगी। वहीं, पाकिस्तान में इमरान खान के पद से हटने के बाद मोदी पहली बार शाहबाज शरीफ से मिलेंगे।
राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से PM मोदी की मुलाकात होगी। दोनों नेताओं के बीच रूस-यूक्रेन जंग और फूड सिक्योरिटी जैसे अहम मसलों पर बातचीत होगी। रूस की ओर से जारी बयान के मुताबिक, स्ट्रैटिजिक स्टेबिलिटी, एशिया-पैसिफिक रीजन की स्थिति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी। PM मोदी ईरानी प्रेसीडेंट इब्राहिम रईसी और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव के साथ भी द्विपक्षीय बैठक करेंगे।
गौर करें तो SCO यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का गठन 2001 में हुआ था। SCO एक पॉलिटिकल, इकोनॉमिकल और सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन है। भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान समेत इसके कुल 8 परमानेंट सदस्य हैं। शुरुआत में SCO में 6 सदस्य- रूस, चीन, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान थे।
2017 में भारत और पाकिस्तान के भी एससीओ से जुड़ने से इसके स्थाई सदस्यों की संख्या 8 हो गई। 6 देश- आर्मीनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और टर्की SCO के डायलॉग पार्टनर हैं। 4 देश- अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया इसके ऑब्जर्वर सदस्य हैं।
SCO: भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC पर तनाव कम होने के बावजूद उजबेकिस्तान में मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात पर सस्पेंस है। मोदी और जिनपिंग की SCO समिट से इतर मुलाकात पर चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री के साथ वहां का मीडिया भी चुप है।
बता दें कि SCO का एक प्रमुख उद्देश्य सेंट्रल एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव का जवाब देना है। कई एक्सपर्ट SCO को अमेरिकी दबदबे वाले NATO के काउंटर के रूप में देखते हैं। 1949 में अमेरिकी अगुआई में बने NATO के अब 30 सदस्य हैं। SCO में शामिल 4 परमाणु शक्ति संपन्न देश भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान NATO के सदस्य देश नहीं हैं। इनमें से 3 देश- भारत, रूस और चीन इस समय अर्थव्यवस्था और सैन्य ताकत के लिहाज से दुनिया की प्रमुख महाशक्तियों में शामिल हैं। यही वजह है कि SCO को पश्चिमी ताकतवर देशों के सैन्य संगठन NATO के बढ़ते दबदबे का जवाब माना जाता है।