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Ranchi: 26 जून को झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा बगईचा, रांची में धार्मिक बहुसंख्यकवाद और सर्वभक्षी कारपोरेटी हमले पर सेमिनार का आयोजन किया। इसमें राज्य के अनेक जन संगठन और वाम राजनैतिक दल के प्रतिनिधि भाग लिए। कार्यक्रम का सञ्चालन अलोका कुजूर, अम्बिका यादव, भरत भूषण चौधरी और प्रवीर पीटर ने किया।
सेमिनार में उपस्थित प्रतिनिधियों ने ज़किया जाफ़री मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णय और उसके बाद गुजरात पुलिस द्वारा तीस्ता सेतलवाद की गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा किया। न्यायालय ने न केवल याचिका को ख़ारिज किया बल्कि जो लोग गोधरा हादसे के बाद हुए सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के न्याय के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनके विरुद्ध ही टिप्पणी की व कार्यवाई तक की बात की। ऐसा प्रतीत होता है कि साल 2002 में गोधरा हादसे के बाद गुजरात में हुए सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के दोषी और हिंसा को न रोकने के दोषियों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय सवाल तक सुनने को तैयार नहीं है।
न्यायालय का उदासीन रवैया कई गंभीर सवाल खड़ा करता है। सरकार नहीं चाहती है कि कोई नागरिक उनके द्वारा किए गए हिंसा के विरुद्ध सवाल करे और जवाबदेही मांगे। प्रतिभागियों ने इसके विरोध में संलग्न वक्तव्य जारी किया और मांग किया कि तीस्ता सेतलवाद और अन्य के विरुद्ध दर्ज की गयी फर्जी प्राथमिकी को तुरंत वापिस लिया जाए और उन्हें तुरंत छोड़ा जाए।
सेमिनार में झारखंड समेत देश में बढ़ते धार्मिक बहुसंख्यकवाद और हिंसा पर व्यापक चर्चा हुई। आदिवासी कार्यकर्ता वासवी कीड़ो ने बताया कि द्वाराआरएस एस और बीजेपी आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन पर लगातार हमले के साथ-साथ उनके धर्म और संस्कृति पर भी हमला किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरना सनातन एक नहीं है। सरना धर्मं अलग है और न कि हिन्दू धर्म का हिस्सा। अफजल अनीस ने कहा कि धार्मिक बहुसंख्यकवाद का दयारा बढ़ता जा रहा है। आज सिर्फ मुसलमानों पर ही हमला नहीं हो रहा है बल्कि हर तरह के अल्पसंख्यकों पर हमला को रहा है। देश फूलों के खुबसूरत गुलदस्ते जैसे है जिसे लगातार सुखाया जा रहा है। झारखंड एवं पूरे देशभर में होने वाली मोब लिंचिंग की घटनाओं पर विचार करने की जरुरत पर जोर दिया।
अश्विनी पंकज ने इतिहस से चले आ रहे धर्म की परिभाषा, उसके रूप पर जोर दिया। आदिवासियों पर हिंदुत्व का हमला नयी बात नहीं है। दशकों से सोची-समझी राजनीति के तहत आदिवासियों को हिन्दू धर्म का हिस्सा बनाने का कोशिश किया जाता रहा है। रवि भूषण ने अपनी बात रखते हुए कहा कि बहुसंख्यकवाद और धार्मिक बहुसंख्यकवाद शब्दों का प्रचालन साल 2014 के बाद से ही हो रहा है। यह दोनों विषय किसी भी रूप में अलग नहीं है। भारत बहुजाति, बहुधार्मिक, बहुसांकृतिक देश है। बहुसंख्यकवाद कैंसर के रूप में हमारे समाज में फ़ैल रहा है। धार्मिक बहुसंख्यकवाद लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदल रहा है।
सेमिनार में आदिवासियों और पूरे देश में लगातार हो रहे कारपोरेटी हमला पर व्यापक चर्चा हुई। सीपीएम के समीर दास ने अपनी बातें रखते हुए कहा कि कारपोरेटी हमला संप्रदायिकता से अलग नहीं है। समाज के वंचित लोगों में मोदी सरकार के संरक्षण में कारपोरेटी हमला हावी है। आर्थिक नीति के विकल्प के रूप में विकेन्द्रित और कोआपरेटिव ढांचा के माध्यम से आर्थिक विकास के साथ आम जनता के सशक्तीकरण का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है। दयामनी बारला ने कहा कि ज़मीनी स्तर पर जो कारपोरेटी हमला दिखाई दे रहा है, यह चिंतनीय है। निजीकरण या कॉर्पोरेट का हमला आदिवासी मूलवासी पर लगातार हो रहा है। भोजन, शिक्षा, जल, जंगल, ज़मीन का दोहन जारी है। मोदी सरकार अंतर्गत लैंड रिकॉर्ड का आधुनिकरण विकास के नाम पर गांवों को उजाड़ने और आदिवासियों को खत्म करने की एक साजिश है।
बेफि यूनियन के एम् एल सिंह ने कहा कि देश में निजीकरण का हमला दशकों से चल रहा है जो मोदी सरकार के बाद और बढ़ गया है। सीपीआई (माले) के शम्भू महतो ने सभी मुख्यधारा पार्टियों के जन विरोधी कॉर्पोरेट-मुखी रवैया पर सवाल उठाया। सीपीआई (माले – लिबरेशन) की नंदिता ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ धर्म के नाम पर समाज को तोड़ रही है और दूसरी तरफ देश को कॉर्पोरेट के हाथो बेच रही है। अग्निपथ योजना सबसे नया हमला है साथ ही, उनकी जन-विरोधी नीतियों का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भी लगातार हमला किया जा रहा है जिसकी सबसे ताज़ा उदहारण है तीस्ता सेतलवाद।
सेमिनार के अंत में चर्चा का समेकन मंथन किए और एलिना होरो ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। सभी प्रतिभागियों ने देश में बढ़ते धार्मिक बहुसंख्यकवाद, हिंदुत्व और सर्वभक्षी कारपोरेटी हमले के विरुद्ध संघर्ष को सुदृढ़ कर आगे बढ़ने का निर्णय लिए।