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Special: बाबा भोले की महिमा अपरंपार है। पवित्र श्रावणी मेला में कावड़िया अपने कंधे पर कांवड़ रखकर सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर आते हैं और बाबा को जल अर्पित करते हैं। कावड़ की महिमा का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि कावड़ यात्रा करने से उतने ही पुण्य की प्रप्ति होती है जितनी अश्वमेध यज्ञ करने की
बता दें कि कांवड़ को लेकर चलने में कई नियमो का पालन करना पड़ता है। इसमें शुद्धता का भी काफी ख्याल रखा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम और रावण के द्वारा भी कावड़ यात्रा किया गया था, श्रवण कुमार ने भी अपने माता पिता को कावड़ में बैठाकर यात्रा कराई थी।
कावड़ यात्रा की महिमा बहुत पूरानी है कथाओं के मुताबिक रावन पर विजय प्राप्त करने के उदेश्य से राजा राम के राज्याभिषेक के बाद भगवान् राम पत्नी सीता और तीनों भाइयों ने सुल्तानगंज से जल भरकर शिव को अर्पित किया था। तभी से शिव भक्त यहां जलाभिषेक करते है।
स्कन्द पुराण के अनुसार कावड़ यात्रा से अश्वमेध यज्ञ करवाने जितने फल की प्रप्ति होती है। इसलिए कांवरिया सभी कष्ट भूलकर दुर्गम रास्तो पर भी बम भोले कर बाबा नगरी पहुंचते है। साथ ही कहा यह भी गया है कि श्रवण कुमार ने भी अपने माता पिता को कावड़ में बैठा कर कावड़ यात्रा कराई थी तभी से श्रावण माह में जलाभिषेक का विशेष महत्व है।